(क) निर्यातकर्ता देश को लाभ
निर्यातक देश में निर्यातों से अधिक आय प्राप्त की जाती है। इनसे आगे विशिष्टीकरण बड़े पैमाने के उत्पादन और पैमाने की बचत प्राप्त हो सकती है। अधिक निर्यात क्षेत्र में ऊँची मजदूरी व ऊँचे लाभ प्राप्त हो सकते हैं तथा समाज में कल्याण की वृद्धि की कल्पना की जा सकती है। इनके प्रभावों के ब्यौरे की व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है-
(i) उत्पादन में वृद्धि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप उत्पादन वृद्धि से कुल उत्पादन अधिकतम होगा, संसाधनों का पूर्ण उपयोग होगा और उत्पादन की लागते समयतया कम हो सकती हैं। यह सभी तब समय है जब यह देश जिस वस्तु का उत्पादन करता है उसमें विशिष्टता प्राप्त कर ले।
(ii) अधिक विशिष्टीकरण देश की सीमा पर होने वाले व्यापार के फलस्वरुप प्रत्येक देश उन वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त कर लेता है जो उसके लिए बहुत उपयुक्त है अथवा जिसके उत्पादन में उसको तुलनात्मक लाभ प्राप्त है यह उपयुक्तता भूमि, श्रम अथवा पूँजी जैसे प्राकृतिक साधना की उपलब्धता पर निर्भर करती है। इसलिए यदि भारत या ताईवान के लिए श्रम प्रधान वस्तुएं उत्पादन करना उपयुक्त है तथा जापान या जर्मनी के लिए पूँजी प्रधान वस्तुओं का उत्पादन करना, तब ये देश अपने उत्पादन की इसी दिशा में विशिष्टता प्राप्त करेंगे उससे उत्पादन संसाधनों का इष्टतम प्रयोग होगा और अंतरराष्ट्रीय श्रम विभाजन संभव होगा।
(iii) तेज आर्थिक विकास विश्व व्यापार की वृद्धि से सभी सहभागी देशों में उत्पादन तथा उपभोग में वृद्धि होगी जिससे अधिक आय होगा तथा राष्ट्रीय उत्पाद की दर ऊँची होगा। इससे आर्थिक विकास को तीव्र गति प्राप्त होगी।
(iv) विस्तृत बाजार तथा निम्न लागते अंतरराष्ट्रीय व्यापार से बाजार का विस्तार होता है और व्यापार में शामिल की जाने वाली वस्तु का उत्पादन अधिक होता है। उत्पादन की मात्रा के बढ़ने से पैमाने की बचत बढ़ती है और उत्पादन लागत तथा कीमतें घट सकती है।
(v) अतिरिक्त उत्पादन का विक्रय अंतरराष्ट्रीय व्यापार से उत्पादक देश के अतिरिक्त उत्पादन विश्व बाजारों में बेचा जा सकता है तथा अर्जित विदेश
मुद्रा से देश में कम मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का आयात किया जा सकता है।
(vi) उत्पादन के साधनों को अधिक प्रत्याय अधिक निर्यातों के कारण निर्यातकर्ता देश में उत्पादन के साधनों को अधिक प्रत्याय प्राप्त होता है। निर्यातो के बढ़ने से निर्यातकर्ता देश में उत्पादन बढ़ ता है जिससे उत्पादन के साधनों की मांग बढ़ जाती है।
(ख) आयातकर्ता देश को लाभ
इसी प्रकार उन देशों को भी लाभ प्राप्त होंगे जो वस्तुओं का आयात करते है। इन देशों में आयातित वस्तुओं की आवश्यकता को महसूस किया जाता है और इसीलिए आयात भी इन देशों के लिए उपयोगी होते हैं इन देशों को मिलने वाले लामों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है:
(i) वस्तुओं और सेवाओं का अधिक उपयोगः अंतरराष्ट्रीय व्यापार से वस्तुओं एवं सेवाओं का अधिक उपयोग समय हो जाता है। इससे संतुष्टि में वृद्धि होती है और सामान्य रूप से लोगों के जीवन स्तर मे सुधार होता है ऐसा संभव है कि आयातित वस्तुएँ देश के भीतर उपलब्ध न हो या जिनका उत्पादन ऊंची कीमतों पर हो सकता है। परन्तु इन वस्तुओं के आयात से देश को स्वयं उत्पादन करने की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
(ii) उच्च आर्थिक संवृद्धि यदि आयात की जाने वाली वस्तुएँ उत्पादन में प्रयोग होने वाला कच्चा माल या मध्यवर्ती वस्तुएँ अथवा निवेश में प्रयोग की जाने वाली पूँजीगत वस्तुएँ है तब घरेलू निवेश तथा उत्पादन सभावना में वृद्धि होगी। इससे वस्तुओं तथा सेवाओं का अधिक उत्पादन होगा और आर्थिक समृद्धि अधिक होगी। विकासशील देशों के लिए आयात संवृद्धि के इंजन के रूप में कार्य करते है क्योंकि इन देशों को विदेशी संसाधन तथा प्रौद्योगिकी के साथ पूंजी पदार्थों की आवश्यकता सदा बनी रहती है।
(iii) वस्तुओं की विभिन्नता आयातकर्ता देश से विभिन्न वस्तए प्राप्त करता है जिनका उत्पादन यह स्वयं नहीं कर सकता। अन्य देशों द्वारा प्राप्त विभिन्न कौशलों का लाभ यह देश उठाता है। उदाहरण के लिए भारत लोग आयातों से उन वस्तुओं के उपभोग का लाभ पा सकते हैं जिन्हें या तो देश के भीतर पैदा नही किया जा सकता है या उनको पैदा करना मंहगा पड़ता है।
(iv) नई तकनीक सीखने का अवसर आयातकर्ता देश विदेश से आयातित वस्तुओं का उत्पादन करना सीख सकता है और स्वयं उन वस्तुओं का उत्पादन कर सकता है तथा देशीय उत्पादित विदेशी वस्तुओं का पुनः निर्यात करके अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर कब्जा कर सकता है। इसका जीता-जागता उदाहरण जापान तथा चीन है जिन्होंने शुरु में विदेशी वस्तुओं की नकल की और जापानियों ने उस कला को सीख लिया और आज विश्व बाजार में सशक्त प्रतिस्पर्धी देश बन गए है।
(v) प्राकृतिक आपदा का सामना करने में सहायक प्राकृतिक आपदा बाद सूखा, सुनामी भूचाल आदि के रूप में हो सकती है। बाढ़ व सूखा कृ पिं उत्पादन को कुप्रभावित करते हैं। इससे कृषि पर आधारित उद्योगों को भी नुकसान होता है। इस तरह औद्योगिक क्षेत्रों में यदि भूचाल आ जाए तो इससे औद्योगिक इकाइयों को बहुत नुकसान होता है। ऐसी दशा में प्राकृतिक आपदा से पीड़ित क्षेत्रों में आवश्यक उत्पादों की कमी हो जाती है। इस कमी को आयात द्वारा पूरा किया जा सकता है।
(ग) सपूर्ण विश्व को लाभ
निर्यातकर्ता और आयातकतां देशों के उपरोक्त विवरण के अतिरिक्त संपूर्ण विश्व भी कई तरीकों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार से लाभान्वित हो सकता है ये लाभ निम्नलिखित है:
(i) व्यापार के सभी भागीदारों को लाभ अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार से अधिक उत्पादन, विश्व उत्पादकता में वृद्धि अधिक आय तथा ऊँची संवृद्धि दर सभी सहभागी देशों को प्राप्त हो सकती है। विदेशी व्यापार द्वारा देशों का आर्थिक विकास सुविधाजनक हो जाता है। यह लाभ व्यापार में भाग लेने वाले देशों को होता है। यह लाभ उपभोक्ताओं को कम कीमतों या अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं की प्राप्ति तथा उत्पादकों को ऊँचे लाभों से प्राप्त होता है।
(ii) विश्व व्यापार का विस्तार अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाजार को विस्तृत करता है और उत्पादन के पैमाने को बढ़ाता है। इससे उत्पादन के बड़े पैमाने की बचते प्राप्त होती है
इससे संसाधनों का उत्तम उपभोग संभव होता है उत्पादन बढ़ ने से शोध और विकास में निवेश संभव होता है और तकनीक में सुधार होता है व सभी देशों को लाभ प्राप्त होता है।
(iii) व्यापार में वृद्धि का गुणक प्रभाव व्यापार से कुछ देशों में उपभोग तथा कल्याण में वृद्धि होती है और अन्य देशों में उत्पादन अधिक होता है। यदि सपूर्ण विश्व को ले ले तब अधिक उत्पादन और उपभोग से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं जैसे रोजगार, राष्ट्रीय आय प्रति व्यक्ति आय कल्याण में वृद्धि, आदि इसके परिणामस्वरूप व्यापार का गुणक प्रभाव सभी देशों की अर्थव्यस्थाओं पर पड़ता है।
(iv) दुर्लभ साधनों का उत्तम उपयोग: क्योंकि सभी देशों की साधन सम्पन्नता भिन्न-भिन्न होती है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से व अपने दुर्लभ साधनों का उत्तम उपयोग करके परस्पर लाभ उठा सकते है। जिन देशों में अपर्याप्त पूँजी उत्पाद है वे विकसित देशों से पूँजी उत्पाद आयात करके अपनी विकास प्रकिया को बढ़ा सकते हैं।