भद्रमथ शिलालेख की क्षतिपूर्ति कैसे हुई? स्पष्ट कीजिए।
लेखक ने भद्रमथ शिलालेख को पच्चीस रुपए में खरीदा था। वह उसे प्रयाग संग्रहालय को देना चाहता था। इस विषय पर एक विवाद खड़ा हो गया। इसके कारण उसे इस मूर्ति को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के पुरातत्व विभाग को देना पड़ा था।
इससे लेखक को खासा नुकसान उठाना पड़ा। अब वह इसकी क्षतिपूर्ति चाहता था। वह जानता था कि जिस गाँव से उसे यह शिलालेख मिल सकता है, तो उसे वहाँ से अन्य पुरातत्व महत्व की वस्तु मिल
जाएँगी। इस उद्देश्य से वह गुलज़ार मियाँ के यहाँ जा पहुँचा। यह स्थान कौशांबी से चार से पाँच किलोमीटर दूरी पर था। गुलज़ार मियाँ के घर के ही बार एक कुआँ था। इसके चबूतरे पर चार खंभे थे। जब लेखक ने बँडेर पर देखा, तो उस पर ब्राह्मी अक्षरों से लिखा हुआ था। लेखक के कहने पर गुलज़ार ने उन्हें खुदवाकर लेखक को दे दिया। इस तरह लेखक की भद्रमथ के शिलालेख की क्षति-पूर्ति हो गई।