10+2+3 शिक्षा प्रणाली कब लागू हुई - 10+2+3 shiksha pranaalee kab laagoo huee

सन् १९६४ में भारत की केन्द्रीय सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया। इसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। डॉ कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे। आयोग ने भारतीय स्कूली शिक्षा की गहन समीक्षा प्रस्तुत की जो भारत के शिक्षा के इतिहास में आज भी सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है। कोठारी आयोग (1964-66) या राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस सुझाव दिए।


सुझा

  • आयोग ने 0-बालिकाओं को विज्ञान व गणित की शिक्षा दी जाय। दरअसल, सामान्य पाठयक्रम की अनुशंसा बालिकाओं को समान अवसर प्रदान करती है।
  • 25 प्रतिशत माध्यमिक स्कूलों को ‘व्यावसायिक स्कूल’ में परिवर्तित कर दिया जाय।
  • सभी बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाय। माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाय।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968)

24 जुलाई 1968 को भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। यह पूर्ण रूप से कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर आधारित थी। सामाजिक दक्षता, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें शिक्षा प्रणाली का रूपान्तरण कर 10+2+3 पद्धति का विकास, हिन्दी का सम्पर्क भाषा के रूप में विकास शिक्षा के अवसरों की समानता का प्रयास, विज्ञान व तकनीकी शिक्षा पर बल तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों के विकास पर जोर दिया गया।


New Education Policy: स्कूली शिक्षा में अब 10+2 खत्म, 5+3+3+4 की नई व्यवस्था लागू होगी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी की गई नई शिक्षा नीति के अंतर्गत स्कूली शिक्षा में बड़े बदलाव किए गए हैं। नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अब इसे 10+2 से बांटकर 5+3+3+4 फार्मेट में ढाला गया है। इसका मतलब है कि अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा 1 और कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे। फिर अगले तीन साल को कक्षा 3 से 5 की तैयारी के चरण में विभाजित किया जाएगा। इसके बाद में 3 साल मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) और माध्यमिक अवस्था के चार वर्ष (कक्षा 9 से 12)। इसके अलावा स्कूलों में कला, वाणिज्य, विज्ञान स्ट्रीम का कोई कठोर पालन नहीं होगा, छात्र अब जो भी पाठ्यक्रम चाहें, वो ले सकते हैं।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि पाठ्यक्रम लचीलेपन पर आधारित होगा, ताकि शिक्षार्थियों को अपने सीखने की गति और कार्यक्रमों को चुनने का अवसर हो। इस तरह जीवन में अपनी प्रतिभा और रुचि के अनुसार वे अपने रास्ते चुन सकेंगे। कला और विज्ञान, पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं आदि के बीच में कोई भेद नहीं होगा। निशंक ने नई शिक्षा नीति के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि इससे सभी प्रकार के ज्ञान की महत्ता को सुनिश्चित किया जा सके, और सीखने के अलग-अलग क्षेत्रों के बीच के हानिकारक पदानुक्रमों और इनके बीच के परस्पर वर्गीकरण या खाई को समाप्त किया जा सके।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-भाल शिक्षा
यह शुरुआती वर्षों की महत्ता पर जोर देती है और निवेश में पर्याप्त वृद्धि और नई पहलों के साथ तीन-छह वर्ष के बीच के सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक-बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु लक्षित है। तीन से पांच वर्ष की आयु के बच्चों की जरूरतों को आंगनवाड़ियों की वर्तमान व्यवस्था द्वारा पूरा किया जाएगा और पांच से छह वर्ष की उम्र को आंगनवाड़ी/स्कूली प्रणाली के साथ खेल आधारित पाठ्यक्रम के माध्यम से, जिसे एनसीईआरटी द्वारा तैयार किया जाएगा, सहज व एकीकृत तरीके से शामिल किया जाएगा।

प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा की योजना और उसका कार्यान्वयन मानव संसाधन विकास, महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण तथा जनजातीय मामलों के मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। इसके सतत मार्गदर्शन के लिए एक विशेष संयुक्त टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा।

बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान
मूलभूत साक्षरता और मूल्य आधारित शिक्षा के साथ संख्यात्मकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्राथमिकता पर एक राष्ट्रीय साक्षरता और संख्यात्मकता मिशन स्थापित किया जाएगा। ग्रेड एक-तीन में प्रारंभिक भाषा और गणित पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एनईपी 2020 का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्रेड तीन तक के प्रत्येक छात्र को वर्ष 2025 तक बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान हासिल कर लेना चाहिए।

ग्रेजुएशन की डिग्री 3 या 4 साल में पूरी होगी 
नई शिक्षा नीति में संगीत, दर्शन, कला, नृत्य, रंगमंच, उच्च संस्थानों की शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होंगे। स्नातक की डिग्री 3 या 4 साल की अवधि की होगी। एकेडमी बैंक ऑफ क्रेडिट बनेगी, छात्रों के परफॉर्मेंस का डिजिटल रिकॉर्ड इकट्ठा किया जाएगा। 2050 तक स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50 फीसदी शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में शामिल होना होगा। गुणवत्ता योग्यता अनुसंधान के लिए एक नया राष्ट्रीय शोध संस्थान बनेगा, इसका संबंध देश के सारे विश्वविद्यालय से होगा।

1986 में तैयार हुई थी वर्तमान शिक्षा नीति
बता दें कि वर्तमान शिक्षा नीति 1986 में तैयार की गई थी और इसे 1992 में संशोधित किया गया था। नई शिक्षा नीति का विषय भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था। मसौदा तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर भी विचार किया। इस समिति का गठन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तब किया था जब मंत्रालय का जिम्मा स्मृति ईरानी के पास था।

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आरएनटीयू के भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र मानविकी एवं उदार कला संकाय रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के तत्वाधान में विश्वरंग 2022 के अंतर्गत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें विश्व के विभिन्न देशों से बुद्धिजीवी साहित्यकार व शिक्षाविद सम्मिलित हुए। संगोष्ठी का विषय था "यूरोप के देशों में हिंदी और भारतीय संस्कृति"।

इस विषय पर सर्वप्रथम बेल्जियम से सम्मिलित हुए कपिल कुमार जी ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि 27 वर्ष पूर्व जब वे बेल्जियम आए थे तो संवाद कायम करने के लिए तीन भाषाओं का अध्ययन किया। लेकिन फिर भी हिन्दी और भारतीय संस्कृति को सहेजकर रखा ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को वह विरासत सौंप सके। अपने विचारों को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि वेदों की भूमि से निकलने वाला ज्ञान ही सर्वव्यापी होगा।

ब्रिटेन से सम्मिलित हुई डॉ. वंदना मुकेश ने बताया कि कैसे हिंदी और भारतीय संस्कृति को जीवित रखने में यूरोप में धर्मस्थल कैसे महती भूमिका अदा करते हैं। वहाँ होने वाले धार्मिक आयोजन अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी भाषा को जीवित रखने में हिन्दी फिल्मों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

स्वीडन से जुड़े हाइन्स वरनर वेसलर ने कहा कि यूरोप के देशों में हिंदी और भारतीय संस्कृति को लोग जानना और पढ़ना चाहते हैं। वहाँ इंडोलॉजी, तुलनात्मक भाषा शास्त्र को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है। संस्कृत, प्राकृत और हिंदी को काफी लोग पढ़ना चाहते हैं। पुर्तगाल से सम्मिलित हुए डॉ. शिव कुमार सिंह ने कहा कि पुर्तगाल और भारत के सदैव अच्छे संबंध रहे हैं। संस्कृत और हिंदी के प्रति भी काफ़ी रुचि है। गीता का अनुवाद भी पुर्तगाली भाषा में हो चुका है। जर्मनी से सम्मिलित हुए रामप्रसाद भट्ट जी ने जर्मनी में हिन्दी भाषा के विकास और उसकी बढ़ती अहमियत पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता संतोष चौबे जी, कुलाधिपति रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय ने की। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि पुष्पिता अवस्थी नीदरलैंड थी।  

मानविकी एवं उदारकला संकाय की अधिष्ठाता डॉ.संगीता जौहरी के स्वागत उदबोधन के साथ गोष्ठी का आरंभ हुआ। प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र की समन्वयक डॉ. मौसमी परिहार ने कार्यक्रम में आभार वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र के सलाहकार डॉ जवाहर कर्णावट ने किया।

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लोकप्रिय पेरेंटिंग एंड अर्ली चाइल्डहुड लर्निंग कोच डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी ने कैडबरी बॉर्नविटा की पहल 'तैयारी जीत की' के तहत पेरेंटिंग पर अपनी पहली किताब 'योर पार्टनर इन पेरेंटिंग' की प्रस्तुत

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भारत की सबसे तेजी से बढ़ती पेरेंटिंग रिसोर्स ऑर्गनाइजेशन'गेट सेट पेरेंट विद पल्लवी' की संस्थापक और प्रसिद्ध पेरेंटिंग एवं अर्ली चाइल्डहुड लर्निंग कोच डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदीने हाल ही में 'योर पार्टनर इन पेरेंटिंग' शीर्षक से एक ई-बुक प्रस्तुत की है जो कि कैडबरी बॉर्नविटा की वेबसाइट 'तैयारी जीत की' पर उपलब्ध कराई जा रही है। यह 7-14 साल के बच्चों वाले माता-पिता के लिए एक पेरेंटिंग बाइबल का कार्य करेगी।

इस ई-बुक का उद्देश्य अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए एक मजबूत नींव का निर्माण करते हुए पेरेंटिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने के साथ उन्हें सशक्त बनाना है। प्रभावी पालन-पोषण के लिए ई-बुक में 4 महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है जिनमें मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, पोषण स्वास्थ्य और शिक्षा शामिल हैं।

डॉ पल्लवी पेरेंट्स को अपने दिमाग को खुले रखने और सामाजिक दबावों के आगे झुके बिना अपनी समझ के अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। 'योर पार्टनर इन पेरेंटिंग' पेरेंट्स को प्रेरित करने का प्रयास करती है, और साथ ही आत्मनिरीक्षण को बढ़ावा देती है ताकिउन्हें पालन-पोषण की अपनी यात्रा के लिए बेहतर तरीके से तैयार कर सकें।

#TayyariParentsKi पेरेंटिंग कोच के रूप में अपने वर्षों के अनुभव की झलक डॉ पल्लवी ने अपनी इस पुस्तक में दिखाई है जो माता-पिता के लिए दृढ़ता, लचीलापन और धीरज में निहित प्रेरणा के रूप में कार्य करती हैं और हर दिन बच्चों को सफलता के लिए तैयार करने के प्रयास में सहायक बनती है। पुस्तक का उद्देश्य माता-पिता में अपने बच्चे की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की क्षमता को समझने के लिए विश्वास पैदा करना है।

पुस्तक पर बात करते हुए डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी ने कहा, “कैडबरी के बोर्नविटा जैसे ब्रांड के साथ कार्य करना एक सम्मान की बात है जिसने हमेशा प्रगतिशील पेरेंटिंग को आगे बढ़ाया है। उनके साथ कार्य करना एक बेहतरीन अनुभव है। अपने बच्चे के साथ हर माता-पिता की पेरेंटिंग की यात्रा अनोखी और चुनौतियों से भरी होती है। हम गेट सेट पेरेंट के माध्यम से माता-पिता के साथ इसी पहलू पर काम कर रहे हैं ताकि उन्हें जानकारियां देकर और जागरुक बनाकर सचेत पेरेंटिंग के लिए सक्षम बनाया जा सके। पेरेंटिंग कोच के रूप में हमारे कार्य ने कई अभिभावकों को दैनिक चुनौतियों निपटने और सकारात्मक पेरेंटिंग को बढ़ावा देने में मदद की है। मेरी किताब इन्हीं सीखों को सामने रखने का एक प्रयास है, जो मुझे विश्वास है कि माता-पिता को वास्तविक जीवन की स्थितियों में मदद करेगी। 'योर पार्टनर इन पेरेंटिंग' उपलब्धियों, चुनौतियों और पेरेंटिंग के प्रयासों पर अधिक प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित करते हुए बच्चों की आत्मविश्वास से पूर्ण और स्वस्थ परवरिश को बढ़ावा देती है तथा सकारात्मक पालन-पोषण की नींव रखती है।

डॉ. पल्लवी के साथ सहयोग पर बात करते हुए विकासदीप कात्याल, मार्केटिंग डायरेक्टर, जीसीबीएम, मोंडेलेज़ इंडिया ने कहा, ''बच्चों के लिए भारत का सबसे पसंदीदा हेल्थ ड्रिंक होने की अपनी सात दशक लंबी विरासत के साथबॉर्नविटा वास्तव में माता-पिता के साथ साझेदारी करने के उद्देश्य को आगे बढ़ा रहा है जिससे वे अपने बच्चों की वास्तविक क्षमता को अनलॉक कर सकें। “तैयारी जीत की... वेबसाइट का मंच उन माता-पिता के लिए बनाया गया है जो अपने बच्चों को आज की दुनिया की चुनौतियों के लिए तैयार करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।

हमने डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी के साथ कई वर्षों के पेरेंटिंग के अनुभव और आधुनिक माता-पिता-बच्चे के संबंधों की गतिशीलता में उनकी अनूठी अंतर्दृष्टि से लाभ उठाने के लिए भागीदारी की है। उनकी पुस्तक 'योर पार्टनर इन पेरेंटिंग'7-14 वर्ष के बीच बच्चों के माता-पिता के लिए एक संसाधन के रूप में कार्य करेगी। वास्तव में बोर्नविटा के उद्देश्यसकारात्मक और प्रगतिशील पेरेंटिंग पर ध्यान देने के साथ माता-पिता और बच्चों को उनकी “तैयारी जीत की” में मदद करता है।

“तैयारी जीत की” पेरेंटिंग सपोर्ट के लिए कैडबरी बॉर्नविटा का एक प्लेटफॉर्म है, जो लगातार आगे बढ़ने की फिलॉसफी में विश्वास करते हुए जो मां-बच्चे के रिश्तों को विकसित करने और बच्चों को जीवन में जीतने में मदद करता है। उनके हालिया वायरल अभियान 'फोर्स्ड पैक्स' ने समाज के हर बच्चे की व्यक्तिगत क्षमता को पहचानने और उसका पोषण करने के लिए एक मजबूत संदेश भेजा है। पेरेंटिंग पर केंद्रित यह प्लेटफॉर्म माता-पिता को अपने बच्चों को लगातार दबाव के बावजूद उनकी वास्तविक क्षमता का एहसास कराने के लिए तैयार करने में मदद करता है।
ई-बुक डाउनलोड करने के लिए लिंक पर क्लिक करें: //www.tayyarijeetki.in/download-e-book/

लेखक की प्रोफ़ाइल के लिंक पर क्लिक करें: //docs.google.com/document/d/1gcUeIm9JP6tZCWmn0rOFXugn2RLP1xI6O30pkp8ZeYo/edit?usp=sharing

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आईसेक्ट द्वारा प्राणिक हीलिंग पर विशेष सत्र का आयोजन

डिजिटल डेस्क, भोपाल। स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करते हुए कार्य क्षमता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आईसेक्ट द्वारा अपने एम्पलॉइज के लिए प्राणिक हीलिंग पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इसमें ऑडियो विजुअल के माध्यम से ट्रेनर और सलाहकार निकुंज डिडवानिया ने ऊर्जा क्या होती है, ऊर्जा के स्त्रोत क्या है, ऊर्जा को महसूस कैसे करते है एवंऊर्जा विज्ञान का डेमो सेशनदेते हुए विभिन्न जानकारियां साझा की। उन्होंने बताया कि प्राणिक हीलिंग की प्रक्रिया स्वस्थ जीवन प्रदान करने के साथ व्यक्गित और व्यावसायिक उन्नति का रास्ता भी खोलती है। इससे शरीर एवं पर्यावरण की ऊर्जा का प्रयोग कर शारीरिक एवं मानसिक क्षमता का विकास किया जा सकता है, निर्णय लेने की क्षमता में सुधार किया जा सकता है, करियर ग्रोथ को बढ़ाया जा सकता है, आपसी संबंधों को सुधारने में भी सहायक है। इस दौरान आईसेक्ट संस्थान समूह से 35 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और प्राणिक हीलिंग को जाना। 

आईसेक्ट की इस पहल पर बात करते हुए निदेशक सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और आगे भी ऐसी व्यक्तित्व विकास उन्मुख कार्यक्रमों को आयोजित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराया। इस विशेष सत्र के आयोजन में आईसेक्ट कॉर्पोरेट एचआर टीम से अर्चना जैन और अभिषेक यादव का सहयोग रहा। 
 

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नवागंतुकों के लिए फ्रेशर पार्टी का हुआ आयोजन

डिजिटल डेस्क, भोपाल। स्कोप कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में सत्र 2022 - 23 के लिये प्रवेशित छात्र - छात्राओं के स्वागत में रंगारंग  कार्यक्रम - " फ्रेशर पार्टी 2022 - 23" का आयोजन किया गया। संस्था की परम्पराओं को निभाते हुये कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ हुई।

कार्यक्रम में उपस्थित संस्था के ग्रुप संचालक डॉ. देवेंद्र सिंह ने मुख्य अतिथि सुश्री अदिती चतुर्वेदी, सभी प्राध्यापकों, अभिभावकों एवं छात्र - छात्राओं इत्यादि का स्वागत किया।  उन्होंने कहा की सभी छात्रों को अनुशासन में रह कर ही अपनी पढ़ाई करना चाहिए तथा प्रायोगिक शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए और अपने जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंचना चाहिए।

मुख्य अतिथि सुश्री अदिती चतुर्वेदी ने सभी नवागंतुक छात्र - छात्राओं का स्वागत किया तथा उन्हें बधाई दी कि वे अपने जीवन के सबसे अच्छे समय से गुजर रहे है और इस मोड़ पर सिर्फ अनुशासन व लगन से अपने आगामी भविष्य को सँवार सकते हैं। आगे उन्होंने कहा कि छात्रों को स्वयं से ईमानदार रहना होगा तथा पढ़ाई को सर्वोपरि रखते हुए अपने लक्ष्य को बनाना व पाना होगा। उन्होंने आईसेक्ट ग्रुप के बारे में संझिप्त में बताते हुए कहा कि नवागंतुक छात्रों ने प्रतिष्ठित स्कोप इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेकर अपने भविष्य को संवारने की एक उत्तम पहल की है।

इस दौरान कार्यक्रम में छात्र - छात्राओं ने गायन, नृत्य, नाटक इत्यादि की प्रस्तुति दी जिनका मूल्यांकन अनुभवी शिक्षकों के पैनल द्वारा किया गया। सभी प्रतिभागी छात्रों ने पूरे उत्साह से समारोह में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में अलग-अलग विधाओं में छात्र–छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया। इसमें बतौर मिस्टर फ्रेशर गोपाल पवार (बीई- सीएस), मिस फ्रेशर मुस्कान गौर (बीई-सीएस), बेस्ट परफॉर्मेंस मेल नीतेश राजपूत (एमबीए), बेस्ट परफॉर्मेंस फीमेल मुस्कान चौहान (बीई- सीएस), बेस्ट पर्सनेलिटी मेल आलेख (एमसीए), बेस्ट पर्सनेलिटी फीमेल श्रेया ओगले (एमबीए), बेस्ट टैलेंट मेल – सुजल चौधरी (डिप्लोमा- ईएक्स), बेस्ट टैलेंट फीमेल शिवानी चौहान (बीई - सीएस) और सांत्वना पुरस्कार अभिलाषा दुबे तथा प्रतिक्षा ठाकुर को नाट्य प्रस्तुति के लिए दिया गया।

कार्यक्रम में उपस्थित सहायक संचालक पिछड़ा वर्ग श्री अनिल सोनी ने सभी प्रवेशित छात्र- छात्राओं को बधाई दी और बताया कि पढ़ाई क साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना भी अति आवश्यक है जिससे छात्रों का सर्वांगीम व्यक्तित्व का विकास होता है। साथ ही स्वयं पर विश्वास भी बढ़ता है। कार्यक्रम में उपस्थित टैगोर अंतरराष्ट्रीय कला एवं संस्कृति केंद्र के संचालक श्री विनय उपाध्याय ने छात्र-छात्रों का मनोबल बढ़ाया। विनय उपाध्याय को आवाज के जादूगर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बड़े ही उत्कृष्ट अंदाज में छात्र-छात्राओं को संबोधित किया।

कार्यक्रम का आयोजन संस्था की टी. एंड पी. संचालिका डॉ. मोनिका सिंह द्वारा किया गया। मंच संचालन छात्र - छात्राओं ने बड़े ही सुचारू रूप से किया। इस कार्यक्रम में स्कोप ग्रुप के सभी सहयोगी संस्थानों के प्राचार्य व प्राध्यापक भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में डॉ. मोनिका सिंह ने सभी छात्र- छात्रो को बधाई दी तथा उनके आगामी भविष्य के लिए शुभाशीष भी दी।

भारत में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति कब घोषित की गई?

प्रथम शिक्षा नीति 1968 में डीएस कोठारी की अध्यक्षता में बनी। दूसरी शिक्षा नीति 1986 में बनी और 1992 में उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन भी किए गए। अब 34 वर्षों पश्चात बहुत बड़े विमर्श के बाद 29 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई

भारत में शिक्षा की शुरुआत कब हुई?

शिक्षण संस्थाओं की स्थापना सर्वप्रथम 1781 ई. में बंगाल के गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने फ़ारसी एवं अरबी भाषा के अध्ययन के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में एक मदरसा खुलवाया। 1784 ई.

स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति कब बनी?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968.

स्वतंत्र भारत का प्रथम शिक्षा आयोग कौन सा था?

इस आयोग ने २५ अगस्त, १९४९ को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी । डॉ. राधाकृष्णन इस आयोग के अध्यक्ष थे इस लिये इसे राधाकृष्णन आयोग के रूप में जाना जाता है। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था

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